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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

Slokas for kids sanskrit shlok

Slokas for kids sanskrit shlok-
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नमस्कार मित्रों ! हमारे जीवन में मंत्रो का बहुत ही महत्व है I कुछ लोग मंत्रो को केवल शब्दों के कलेक्शन के रूप में देखते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है जो मंत्रो का जप मन से सच्चे दिल से करते हैं उनका मन प्रसन्न रहता है,उनका confidence level बढ़ा रहता है I इस कारण से वह कठिन से कठिन कार्य को कर सकते हैं और वह जीवन में अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं I
           इन मंत्रो को हमारे ऋषि मुनियों ने कई वर्षों की कठिन तपस्या के परिणाम स्वरुप प्राप्त किया था I यही कारण है कि इन मंत्रो के उच्चारण मात्र से, श्रवणमात्र से हमारे मन की चेतना जाग जाती है,यह मन्त्रों की महिमा है और यदि इन मन्त्रों को अपने बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करते हैं और बच्चे इन मन्त्रों सीखते हैं या गाने का अभ्यास करते हैं या याद करने की कोशिश करते हैं तो निश्चित रूप से उनके मस्तिष्क का विकास होगा, उनका मन प्रसन्न रहेगा और उनमें एकाग्रचित्तता आयेगी और उनकी याद करने की क्षमता भी बढ़ेगी I अतः हम यहाँ कुछ मंत्र लिखित और गाकर बता रहे हैं, जिन्हें सीखकर आप भी लाभ उठा सकते हैं I
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1. शांताकारम भुजगशयनम पद्मनाभम सुरेशं I
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम II
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिविर्ध्यानग्मयम I
वंदे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् II
अर्थात- जिनकी आकृति अतिशय शांत है, वह जो धीर क्षीर गंभीर हैं, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं), जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है,अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अति मनभावन एवं सुंदर है ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं) जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, (योगी जिनको प्राप्त करने के लिया हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं) भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ (ऐसे परमब्रम्ह श्री विष्णु को मेरा नमन है) जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं,जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर हैं I
2. वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये I
जगतः पितरौ वंदे पार्वती परमेश्वरौ II
अर्थात- जगत का कल्याण करने वाले,माता पिता के सामान भगवन शंकर और माता पार्वती को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ I
3. नमो ब्राह्मण देवाय गो ब्राह्मण हिताय च I
जगद्विताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः II
अर्थात- भगवान को नमस्कार जो सर्वोच्च चेतना की प्रकृति है, और गायों और ब्राह्मणों के मित्र और लाभकारी व्यक्ति, भगवान को नमस्कार जो पूरे विश्व का मित्र और लाभकारी है; श्रीकृष्ण को नमस्कार; श्री गोविंदा को नमस्कार; नमस्कार, उसे बार-बार नमस्कार।
4. कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये  सरस्वती I
करमूले तु गोविंदः प्रभाते करदर्शनम् II
अर्थात- हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मीमध्य भाग में सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में भगवान नारायण निवास करते हैं अतः प्रातः काल अपने हाथों का दर्शन करते हुए अपने दिन को शुभ बनाए I  
      मातृभूमि देवी है जिसकी रक्षा स्वयं विष्णु करते हैं I धरती पर चरण रखते समय हम धरती मां से क्षमा मांगते हैं I
5. समुद्र वसनेदेवी ! पर्वतस्तनमंडले I
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे II
अर्थात- हमारी मातृभूमि देवी लक्ष्मी का ही रूप हैजिसकी रक्षा स्वयं विष्णु भगवान करते हैं इस देवी ने समुद्र को वस्त्र रूप में धारण किया है तथा पर्वतों का मंडल ही पयोधर है जिनसे रसधारा नदियों के तीर जल से हम पुत्रों को जीवन मिलता है हे माता ! हमें तेरे शरीर को अपने पदों/परों से स्पर्श करना होगा अतः पुत्र मानकर हमें क्षमा करना I
6. ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुःशशीभूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्चशुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् II
अर्थात- ब्रम्हा, विष्णु, शिव, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु सब मेरे प्रभात को मंगलमय करें I
7. करपूर गौरम करूणावतारम संसार सारम भुजगेन्द्र हारम |
सदा वसंतम हृदयारविंदे भवम भवानी सहितं नमामि ||
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैंकरुणा के अवतार हैंसंसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैंवे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
8. जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥
अर्थात- जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित होकर गंगा जी की धाराएं उनके कंठ को प्रक्षालित होती हैं,जिनके गले में बड़े एवं लंबे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें I
9. नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम I
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहम II
अर्थात- हे मोक्षस्वरुप विभुव्यापकब्रह्म और वेदस्वरूपईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजीमैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरुप में स्थित (अर्थात मायादिरहित)गुणों से रहितभेद रहितइच्छा रहित चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले)आपको में भजता हूँ ॥
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