याग्यवाल्क्य ऋषि की विनम्रता तथा साहस-
हमारे देश में ज्ञान विज्ञान, त्याग-तपस्या, साहस और बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले अनेक ऋषियों ने जन्म लिया है, उनमें से एक ऋषि याग्यवाल्क्य भी थे/ एक बार राजा जनक ने प्रतिज्ञा की और राजा जनक के मन में यह विचार आया की इन हजारों विद्वानों में देखें कौन सबसे अधिक विद्वान है, उन्होंने अपनी गौशाला से 1000 गायें मंगवाई तथा उनके सींगों में सोना बंधवा दिया और विद्वानों की सभा में यह घोषणा कर दी कि जो सबसे अधिक विद्वान हो वह इन गायों को ले जाएं, सभा में उपस्थित सभी विद्वान एक दूसरे का मुंह देखने लगे लेकिन उस सभा में उपस्थित विद्वानों में किसी की हिम्मत नहीं हुई की हम यह गायें ले जाएं जब इन गायों को ले जाने के लिए कोई नहीं उठता तो ऋषि याज्ञवल्क्य जी ने अपने शिष्यों से कहा कि शिष्यों इन गायों को ले चलो तभी सभा में उपस्थित सभी विद्वान, ऋषि चीख उठते हैं और याज्ञवाल्क्य को चुनौती देते हैं कि क्या इस समय में तुम ही एक विद्वान हो बाकी हम मूर्ख बैठे हैं, तब याज्ञवाल्कय ऋषि ने कहा कि इस सभा में उपस्थित सभी विद्वानों, ब्राह्मणों, ऋषि, राजाओं, महाराजाओं को मैं प्रणाम करता हूंI मैं इन गायों को इस उद्देश्य से नहीं ले जा रहा हूँ कि इस सभा में मैं सबसे अधिक बुद्धिमान हूं, विद्वान हूँ, अपितु इन गायों की मुझे तथा मेरे आश्रम को जरूरत है, इस कारण से मैं इन गायों को ले जा रहा हूं, लेकिन सभी विद्वान उनको शासत्रार्थ के लिए चुनौती देने लगते हैं अतः याग्यवाल्क्य ऋषि शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हो जाते हैं और सभी ब्राह्मणों, विद्वानों के सभी प्रश्नों का उत्तर देते हुए सभी को पराजित कर देते हैं और इसप्रकार वहां उपस्थित सभी ऋषि उनको गायों को ले जाने की आज्ञा देते हैंI याग्यवाल्क्य ऋषि खुशी से गायें लेकर चले जाते हैंI
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