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बुधवार, 1 मई 2024

राणा प्रताप के सहयोगी भामाशाह की दानवीरता-

राणा प्रताप के सहयोगी भामाशाह की दानवीरता-

bhamashah's philanthropist

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हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप अरावली की पहाड़ियों में एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर भटक रहे थेI कुछ समय तो उनके सामने संकट का पहाड़ टूट पड़ा और उनके परिवार को घास की रोटियां खानी पड़ी और दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीI इन भयंकर संकटों के सामने एक बार राणा प्रताप निराश होने लगेI उनके मन में निराशा छाने लगी, तब भामाशाह उन्हें ढाढस बंधाते हैंI भामाशाह अपने जीवन भर की कमाई महाराणा प्रताप को 2000000 रुपए और 20000 अशरफिया देकर कहा कि आप निराश ना हो हम दुबारा सेना खड़ी कर चित्तौड़गढ़ स्वतंत्र कराकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे धन्य है ऐसे भामाशाहI ऐसा त्याग का उदाहरण इतिहास में कहीं अन्य नहीं मिलेगाI

                    इस प्रकार महाराणा प्रताप ने एक बार पुनः सेना तैयार की और धीरे-धीरे मेवाड़ के सभी दुर्गों पर अधिकार कर लियाI 25 वर्षों तक अकबर के लिए चुनौती बने रहेI उन्होंने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चावंण में अपनी राजधानी बनाईI यहीं पर चामुंडा देवी का मंदिर भी बनवायाI जो आज भी विदमान हैI महाराणा प्रताप चित्तौड़ वापस लेने की तैयारी कर ही रहे थे, किंतु वह पूरी न हो सकी उनकी बज्र के समान कठोर काया युद्ध करते-करते टूट गई थीI चित्तौड़गढ़ की आजादी आगे की पीढ़ी पर छोड़ 57 वर्ष की आयु में इस क्षणभंगुर शरीर को छोड़ कर स्वर्ग सिधार गएI महाराणा प्रताप इस देश के वीर सेनानी कभी न झुकने वाले, कभी न टूटने वाले महापुरुष थेI अपनी वीरता के कारण राणा प्रताप और भामाशाह हिंदुस्तानियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगेI

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