shiv tandav stotram-
शिव तांडव से जुड़ी कथा- मान्यता
है कि एक बार अहंकार के वशीभूत होकर रावण अपने बल का प्रदर्शन करते हुए कैलाश
पर्वत को उठाकर लंका लिए जा रहा था,तब रावण का अहंकार तोड़ने के लिए शिव जी ने अपने
पैर से कैलाश पर्वत को स्थिर कर दिया और रावण का हाँथ पर्वत के नीचे दब गया,वह दर्द से चिल्ला उठा - 'शंकर शंकर' - जिसका मतलब था क्षमा करिए, क्षमा करिए और वह महादेव की स्तुति
करने लगा I उसकी जो
कराह निकली वही शिव तांडव स्त्रोत्रम बन गया I यह पूरा
संस्कृत भाषा में है,जो कि
बहुत क्लिष्ट और कठिन है लेकिन हम यहाँ शिव तांडव स्त्रोत्रम को तोड़कर प्रस्तुत
करेंगे जिससे आप बड़ी आसानी से पढ़ सकेंगे I
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and listen its-
Original-जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो
शिवम् ॥1॥
Easy way- जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावि
तस्थले गलेव लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्ड मर्वयं चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः
शिवो शिवम् ॥1॥
Original-जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः
प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
Easy way- जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्नि लिंप
निर्झरी विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके किशोर चंद्रशेखरे रतिः
प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
Original- धराधरेंद्रनंदिनी
विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु
वस्तुनि ॥3॥
Easy way- धरा धरेंद्र नंदिनी विलास
बन्धु बन्धुर स्फुरद्दि गंत संतति प्रमोद मान मानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरा पदि क्वचि द्वि गम्बरे मनो
विनोद मेतु वस्तुनि ॥3॥
Original- जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं
बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥
Easy way- जटा भुजंग पिंग लस्फुरत्फणा
मणिप्रभा कदंब कुमद्र व प्रलिप्त दिग्व धू मुखे।
मदांध सिंधु रस्फुरत्व गुत्तरीय मेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तु
भूत भर्तरि ॥4॥
Original- सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥5॥
Easy way- सहस्र लोच नप्रभृत्य शेष लेख
शेखर प्रसून धूलि धोरणी विधू सरांघ्रि पीठ भूः।
भुजंग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोर
बंधुशेखरः ॥5॥
Original- ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा
निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥6॥
Easy way- ललाट चत्व रज्वल द्धनंज
यस्फुलिङ्गभा निपीत पंचसायकं नमन्नि लिंप नायकम्।
सुधा मयू खलेखया विराजमान शेखरं महाकपालि संपदे शिरोजटाल
मस्तुनः ॥6॥
Original- करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया
धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी
त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥
Easy way- कराल भाल पट्टिका
धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरी कृत प्रचंड पंच सायके।
धरा धरेंद्र नंदिनी कुचाग्र चित्र पत्रक प्रकल्पनैक शिल्पिनी
त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥
Original- नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः
प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं
जगंद्धुरंधरः ॥8॥
Easy way- नवीन
मेघ मंडली निरुद्ध दुर्ध रस्फुरत्कुहु निशीथ नीतमः प्रबद्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस्त नोतु कृत्ति सिंधुरः कला निधान बंधुरः
श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
Original- प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं
तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
Easy way- प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच
कालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं
तमंत कच्छिदं भजे ॥9॥
Original- अखर्वसर्वमंगला
कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं
भजे ॥10॥
Easy way- अखर्व सर्व मंगला कला कदम्ब
मंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांत कांध कांतकं तमंत
कांतकं भजे ॥10॥
Original- जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल
भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित:
प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
Easy way- जयत्व द
भ्रवि भ्रम भ्रमद्भुजंग मस्फुरद्धगद्धग द्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदंग तुंगमंगल ध्वनि क्रमप्रवर्तित:
प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
Original- दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः
सुह्रद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा
सदाशिवं भजे ॥12॥
Easy way- दृषद्वि चित्र तल्पयो र्भुजंग
मौक्ति कमस्रजो र्गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुह्रद्वि पक्ष पक्षयोः।
तृणा रविंद चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः समं प्रवर्त यन्मनः
कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
Original- कदा
निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी
भवाम्यहम् ॥13॥
Easy way- कदा निलिंप निर्झरी निकुञ्ज
कोटरे वसन् विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मंजलिं वहन्।
विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः शिवेति मंत्र मुच्चरन् कदा
सुखी भवाम्यहम् ॥13॥
Original- निलिम्प
नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां
चयः ॥14॥
Easy way- निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौल
मल्लिका-निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णि कामनोहरः।
तनोतु नो मनो मुदं विनोदिनीं महनिशं परिश्रय परं पदं तदंग
जत्विषां चयः ॥14॥
Original- प्रचण्ड
वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो
जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
Easy way- प्रचण्ड वाड वानल प्रभा शुभ
प्रचारणी महाष्ट सिद्धि कामिनी जना वहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालि कध्वनिः शिवेति मन्त्र भूषगो
जगज्ज याय जायताम् ॥15॥
Original- इमं हि
नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां
सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16॥
Easy way- इमं हि नित्यमेव मुक्त मुक्त
मोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहनां सु
शंकरस्य चिंतनम् ॥16॥
Source- https://aajtak.intoday.in/
shiv tandav stotram in hindi-
जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित होकर गंगा जी की धाराएं उनके कंठ को
प्रक्षालित होती हैं, जिनके
गले में बड़े एवं लंबे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव
करते हैं, वे
शिवजी हमारा कल्याण करें II 1 II
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